देव, ऋषि और पितृऋण की तरह मातृभूमि का ऋण भी प्रत्येक मनुष्य पर अवश्य ही है और
इस ऋण से मुक्ति का यथासाध्य प्रयास करना ही चाहिए, लेकिन हमारी मातृभूमि का
क्षेत्र विस्तृत है। ऐसे में धरती के सबसे महत्वपूर्ण अंग और माता सरीखी नदियों
की सेवा के साथ पानी के परंपरागत संसाधन की सेवा करने का संकल्प एक बडा कार्य
हो सकता है। .....read more
- पंकज मालवीय